वन विभाग की कमजोरियाँ और मजबूरियाँ

आर.एन. दूबे

वन विभाग तकनीकी विभाग माना जाता है। परन्तु कुछ ऐसे मुद्दे है जिन पर तकनीकी दृष्टि से पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।

वनों का सीमांकन एवं वनभूमि सम्बंधी :- जो वन स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ही आरक्षित (Reserved) घोषित हो गये थे, उनकी स्थिति आज भी खराब नहीं है। आरक्षण से बाहर रह गये वन मुख्यतः दो प्रकार के थे। सीमांकित संरक्षित वन तथा असीमांकित संरक्षित वन। तत्कालीन शासन (मध्य भारत, महाकौशल, विन्ध्य प्रदेश) ने कुछ Blanket Notification द्वारा All Unoccupied Govt. land को संरक्षित वन घोषित कर दिया था। इनके अतिरिक्त कुछ निजी वनभूमि तथा राजस्व वनभूमि भी थी। वर्ष साठ के दशक में पूरे प्रदेश में एक बहुत अच्छी योजना लागू हुई थी। सर्वेक्षण एवं सीमांकन (Survey and Demarcation) के अंतर्गत समस्त असीमांकित वनक्षेत्र का विधिवत सर्वेक्षण कर सीमांकन किया गया था। पटवारी पैमाना 16″ = 1 मील तथा वन विभाग में प्रचलित पैमाना 4″ = 1 मील दोनों पर मानचित्र तैयार किये गये थे। फिर प्रत्येक वन खण्ड (Forest Block) में शामिल समस्त निजी राजस्व तथा वनभूमि का खसरा क्रमांक विवरण तैयार किया गया था। जो भूमि वनखण्ड में शामिल नहीं की गई थी उसका भी इसी प्रकार का विवरण तैयार किया गया था। सर्वेक्षण पुस्तिका में दोनों प्रकार के नक्शे, खसरावार विवरण एवं सारी जानकारी Block History File में इकट्ठा रखी गई थी। यह फाईल अधिकांश वनमण्डलों में ढूँढ़ने से आज भी मिल जायेगी।

उपरोक्त आधार पर भारतीय वन अधिनियम की धारा-4 के अन्तर्गत वनखण्डों को आरक्षित घोषित करने की शासन की इच्छा का प्रकाशन भी किया गया और Forest Settlement Officers की नियुक्तियाँ भी हुई। परन्तु अधिकांश F.S.O. ने आज तक कार्यवाही पूरी नहीं की। इस बीच अनेक F.S.O. बदले। पूर्णकालिक के स्थान पर अन्य कार्य कर रहे डिप्टी कलेक्टर्स को यह काम दिया गया। कुछ समय के लिये उप वन मण्डल अधिकारियों को भी यह दायित्व कुछ जिलों में दिया गया। आज की स्थिति में यह दायित्व सम्बंधित राजस्व अनुविभागीय अधिकारी के पास है। इनमें से अधिकांश को यह जानकारी ही नहीं है कि उन्हें ऐसा कोई कार्य भी करना है। इस बदला-बदली में अभिलेख तथा नक्शे भी इधर-उधर हो गये।
सर्वेक्षण कार्य पूरा होने के बाद प्रस्तावित वनखण्ड की सीमा पटवारी नक्शों पर पेंसिल से डाली गई थी, जो धारा 20 के नोटिफिकेशन के बाद स्थाई होना थी। लेकिन न नोटिफिकेशन हुआ और न पटवारी नक्शे पर डाली पेंसिल लाईन स्थाई हुई। आज तो वह पेंसिल लाईन भी नहीं है और अधिकाश राजस्व तथा वनाधिकारियों को यह पता भी नहीं है कि ऐसा कुछ हुआ भी था।
जो भूमि इस सीमांकन से बाहर छोड़ दी गई थी या जिसका सीमांकन हो ही नहीं सका था उसे नक्शे में Orange रंग से दिखाया गया था, इसलिये उसे Orange Area कहा जाने लगा। इसमें से जिस क्षेत्र का सीमांकन हुआ नहीं था वह शायद आज तक भी नहीं हुआ। जिस क्षेत्र को सीमांकन के बाद बाहर छोड़ा गया था उसे राजस्व विभाग को वापिस किया जाना था। यह कार्य अवश्य बड़ी तत्परता से किया गया। इतना ही नहीं इस क्षेत्र में खड़ी वनोपज (वृक्षों) को भी हस्तांतरण के पूर्व पूरी तरह से काट लिया गया। इसे नाम दिया गया Mopping up। यदि यह क्षेत्र यथावत रहता तो आरक्षित या प्रस्तावित आरक्षित वन क्षेत्र के बीच Buffer का काम करता और स्थानीय लोगों के निस्तार की भी पूर्ति होती।

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